सोमवार, 15 दिसंबर 2008

पं.सुन्दरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय........अभ्यारण्य....?

उच्च शिक्षा में अनियमित (स्वाध्याई ) छात्रों की बढती संख्या नें ,नीति निर्माताओं की नींद उड़ा डाली थी और वे उच्च शिक्षा में गुणवत्ता की अभिवृद्धि के लिए चिंतन ,नीति निर्धारण और उसके क्रियान्वयन हेतु प्रयत्नशील हो गए थे ! उनके चिंतन की पृष्ठभूमि में निम्नांकित बिन्दुओं का महत्वपूर्ण स्थान था !

१ : उच्च शिक्षा के नियमित संस्थान सर्व सुलभ नहीं हैं और भारी भरकम लागत /खर्चों के मद्देनज़र इनका विस्तार सहज और सुविधाजनक नहीं है !

२: उच्च शिक्षा में 'मांग' की अधिकता के कारण संसाधनों ( आपूर्ति ) का विस्तार अनिवार्यता है ! जोकि पूंजी के अकूत और अबाधित निवेश से ही सम्भव हो सकता है ? हालाँकि हमारे देश की परिस्थितियां इसके अनुकूल नहीं है अतः वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर शुरू किए गए प्रयोग , अनियमित (स्वाध्याई ) छात्र होकर डिग्री पाने की सुविधा ने गुणवत्ता का संकट खड़ा कर दिया है !

३: उच्च शिक्षा में गुणात्मक ह्रास देश हित में कदापि भी नही है ! इसलिए अनियमित छात्रों की भीड़ में ही प्रयोग करना पड़ेंगे !

४ : इसके अतिरिक्त अध्ययन आकांक्षियों का एक बड़ा वर्ग उम्र की सीमा के ऊंचे छोर पर आकर भी ,सामाजिक /पारिवारिक /आर्थिक अथवा नियमों के बंधन या अन्य कारणों से उच्च शिक्षा से वंचित रह गया है उसे भी उच्च शिक्षा की सहूलियत उपलब्द्ध कराने की जरुरत है !

इसीलिए नीति निर्माताओं के सामने लागत में वृद्धि (अधिक पूंजी निवेश ) किए बिना ,वंचित वर्ग को गुणवत्ता सहित उच्च शिक्षा के विकल्प उपलब्ध कराने की चुनौती मुंह बाये खड़ी थी !
चूँकि नियमित संस्थानों में एक निश्चित समय में ही संसाधनों यथा स्टाफ ,भवन उपकरण आदि का उपयोग किया जा रहा था और शेष समय में पूंजी के अल्प निवेश (प्रेरणा स्वरुप ) के साथ इन संसाधनों का पुनः उपयोग सम्भव था अतः भावी छात्रों में स्वाध्याय के साथ शिक्षकों ( विशेषज्ञों )के सीमित संपर्क और नियमो /बंधनों में शिथिलता के साथ, दूरस्थ शिक्षा यानि की मुक्त शिक्षा की परिकल्पना की गई थी !
इसका एक अर्थ यह भी है कि छात्रों को शिक्षा की नियमित प्रणाली में जोड़े बिना ,पहले से उपलब्ध संसाधनों के पुनःप्रयोग और उन्नत तकनीक के समावेश द्वारा "मांग आपूर्ति " की सहज और समानांतर कम खर्चीली व्यवस्था का संचालन !

स्पष्ट है कि दूरस्थ शिक्षा परिषद् की स्थापना और केन्द्र तथा राज्य मुक्त विश्वविद्यालयों की स्थापना, नीति निर्माताओं की दूरगामी सोच और रणनीति का हिस्सा है !

हमारे छत्तीसगढ़ में मुक्त शिक्षा के इन्ही बुनियादी उसूलों के साथ पं सुन्दरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय बिलासपुर की स्थापना राज्य शासन ने की है ! किंतु क्या वास्तव में विश्वविद्यालय मुक्त शिक्षा का सच्चा प्रतिनिधि बन पाया है ? क्या वास्तव में कम लागत में "उच्च शिक्षा आपके द्वार" की परिकल्पना पर विश्वविद्यालय खरा उतरा है ?
यहाँ छोटे बड़े कर्मचारियों / अधिकारियों की विराट सेना कार्यरत है किंतु छात्र सुविधाएँ बड़ा सा शून्य !

आप यह जान कर दुखी होंगे कि यहाँ पर छात्र प्रवेश तो लेते हैं पर वर्षों तक परीक्षा को तरस जाते हैं और अगर परीक्षा हो भी जाए तो परिणाम को !

यहाँ पाठ्यक्रमों को लेकर भ्रम , सुरसा के मुंह की तरह फैला हुआ है , और मुक्त शिक्षा के विशेषज्ञों की यहाँ पर कोई पूछ परख नही है ! इसलिए छात्रों पर नियमित विश्वविद्यालय की तरह नियम थोपने वाले नौसीखिये कर्मचारी/ अधिकारी मनमानी करते हैं ! जिसके कारण छात्र दिशाहीन और मतिभ्रम का शिकार हो चले हैं !
क्या पं सुंदर लाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय रसूखदार और अनुभवहीन कर्मचारियों /अधिकारियों (और शायद अपात्र भी ?) का अभ्यारण्य बन गया है ?

शनिवार, 4 अक्तूबर 2008

ये तो बद्तमीजी की इन्तहा है

मध्य प्रदेश के सम्माननीय सांसद को रेलवे पुलिस के जवानों ने लहू लुहान कर दिया ! यह देख /सुन कर बहुत दुःख हुआ ! सांसद किसी भी दल के सदस्य हों उनका सम्मान जनता के प्रतिनिधि का सम्मान और उनकी बेइज्जती जनता की बेइज्जती है !
पुलिस कर्मी जनप्रतिनिधियों के साथ इस तरह का सलूक करते हैं तो साधारण जनता के प्रति उनके रवैये को बखूबी समझा जा सकता है !
लोकतान्त्रिक देश के नागरिक ( अदना ही सही ) की हैसियत से हमारा मानना है कि
ये तो बद्तमीजी की इन्तहा है !

गुरुवार, 28 अगस्त 2008

कुन

अव्वल तो यह कि कई दिनों तक निजी /पारिवारिक कारणों से ब्लाग तक पहुंचना सम्भव नही हुआ और दूसरा यह कि टेलीफ़ोन्स और इंटरनेट पर ईश्वर तक का ज़ोर नहीं चलता तो हम किस खेत की मूली होते ! कहने का मतलब यह है कि पहले ख़ुद की समस्याएं और बाद में इन्टरनेट सर्विसेस ने बेबस कर दिया !

अब जब ब्लाग पर पहुंचे तो 'कुन के लिए ' और 'खैरियत तो है ' ने अहसास दिलाया कि कुल १८ दिनों का नागा हो चुका है ! इसलिए 'खैर' की दुआओं के लिए बहुत बहुत शुक्रिया !

यह जानकर खुशी हुई कि 'उम्मतें ' हैरान- ओ - परेशानकुन हैं !

आपके लेख और टिप्पणी पर मेरा रिएक्शन यह है कि जिस तरह से आप परेशानकुन हैं उसी तर्ज पर एक लफ्ज़ है 'कारकुन' यानि कि काम करने वाला !
मतलब यह है कि 'कुन' पर्शियन (फ़ारसी भाषा के ) प्रत्यय के रूप में -'करने वाला' है और अरबी भाषा में 'कुन ' क्रिया है जिसका मतलब है 'हो जा' !
आपको स्मरण होगा कि 'कुन' यानि कि 'हो जा ' शब्द ईश्वर की जुबान से निकले थे , जिनसे सृष्टि की रचना हुई !

मैंने ब्लाग का नाम चुनते समय अरबी शब्द 'कुन' को ख्याल में रखा था उम्मीद है एक 'रचनाकार' के रूप में मेरी भावनाओं को आप समझ गए होंगे !

रविवार, 24 अगस्त 2008

खैरियत तो है

कई दिन हुए कुन में कुछ छपा नहीं है !

नमिरा खैरियत तो है ?

हम हैरानकुन और परेशानकुन हैं !

हमने कुछ फरमाइश की है भई !

सोमवार, 18 अगस्त 2008

कुन के लिए

काफी पहले तय हुआ था कि नमिरा उम्मतें में लेख लिखा करेंगी और उन्होंने अपना कीमती समय निकाला भी ! इसी दरम्यान उन्होंने 'कुन ' की शुरुआत की और मुझे भी वही जिम्मेदारी दे डाली जोकि मैंने उन्हें दी थी यानि कि मुझे भी उनके ब्लाग में लेखन का कार्य करना है !
सबसे पहले उन्हें मुबारकबाद कि उन्होंने ब्लागिंग शुरू की !और कुछ बेहतरीन लेख भी लिखे लेकिन बदकिस्मती से मैं उन पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं दे पाया मगर सच ये है कि ब्लाग की तरह लेख भी शानदार विचारों से परिपूर्ण थे ! इसलिए सबसे पहले उनकी चिंतनशीलता को साधुवाद !
उनके ब्लाग में देर से पहुँचने के लिए खेद व्यक्त करता हूँ !
अब मुद्दे की बात यह की चूँकि नमिरा के ब्लाग का नाम चीन से आया हुआ लगता है तो यह जरुरी है कि नमिरा अपने ब्लाग के नामकरण के विषय में कुछ बताएं ? उम्मीद करते हैं कि वे 'कुन' के बारे में हमारी जानकारी में वृद्धि जरुर करेंगी ?

रविवार, 10 अगस्त 2008

असीम घृणा

ब्लाग उम्मतें में समीर नें लिखा कि ' आओ देश की समृद्धि के लिए पुतला फूंकें ' उनका मंतव्य साफ समझ में आता है कि वे देश में अराजक प्रवृत्ति के नागरिकों के बर्ताव से बहुत दुखी हैं ! उनकी सदाशयता स्तुत्य है ! उन्हें एक अच्छे आलेख के लिए बधाई !
समीर की तरह हर देशभक्त सोचता है मगर बेबस है क्योंकि अगर आप 'पुतला फूंको' प्रवृत्ति के खिलाफ़ एक शब्द भी बोले तो आप पर देशद्रोही /समाज द्रोही और इस तरह के ढेरों विशेषण जुड़ जायेंगे ! यही नही आप ख़ुद का पुतला याकि आपका घर भी फूंका जा सकता है !
देश के लिए सुचिंतित और सुमंगल आकांक्षी , शान्ति प्रिय लोगों की आबादी दिन बदिन सिकुड़ रही है ! और हल्ला बोल ,हड्डी तोड़ ,पुतला /घर फूंकू लोगों की जनसँख्या में दिन प्रतिदिन विस्तार हो रहा है ! शायद सुरसा के मुंह की तरह से !
ये लोग तार्किक /चिन्तनशील प्राणी तो क़तई नहीं कहे जा सकते इनका आचरण भीड़ व्यवहार के अतिरिक्त कुछ भी नही होता ! ये लोग स्वभाव से क्रोधी /हिंसक व्यवहार याकि रक्ष संस्कृति के प्रतीक हो चले हैं !

हमें बचपन से सिखाया गया है कि हम सबमे ईश्वर का अंश मौजूद है ! एक तरह से हम सभी अंशावतार हैं ! ईश्वर , जोकि असीम दया ,अप्रतिम प्रेम , अनुकम्पा की अनन्तता और निश्चलता का अक्षय स्रोत है उसका अंशावतार इन्सान ,इतना फ़्रस्ट्रेटेड , इतना असहिष्णु ,इतना हिंसक ,इतना अतार्किक , इतना दुर्बुद्धि और सहराए -इश्क ( प्रेम का रेगिस्तान ) क्यों है ! उसमे दूसरे इंसानों के लिए अनुकम्पा /दया के स्रोत शुष्क क्यों हो गए हैं !
आखिर इन्सान ???
असीम घृणा के साथ जी कर इन्सान रह जाता है क्या ? ?

शुक्रवार, 1 अगस्त 2008

अनदेखे और अनजाने के इश्क में

उम्मतें की यह सीरिज काफी ज्ञानवर्धक है ! आंकडों से ये पता चलता है कि धर्मान्तरण के रास्ते से देश के जनसंख्यात्मक ढांचे में बदलाव लाने की कोशिश की जा रही है !
धर्म परिवर्तन के बाद नव ईसाई को सामाजिक स्तर में परिवर्तन जरूर दिखाई पड़ता होगा पर यह भी सच है कि उनके धर्मान्तरण की मूल प्रष्ठभूमि आर्थिक ही है !
इसलिए यह सोचना कि धर्मान्तरण स्वेच्छा से किया जाता है यह ग़लत है ! हाँ आर्थिक उन्नति के लिए स्वेच्छा की बात हो तो बात अलग है !

शुक्रवार, 25 जुलाई 2008

सोमनाथ ये क्या किया और क्या कर रहे हो

'उम्मतें' ब्लाग में आदरणीय के स्खलन के नाम से इस विषय में काफी कुछ छपा है इसलिए डिटेल लिखना व्यर्थ है !
सोमनाथ के जनम दिन के बहाने कुछ ब्लागरों ने उन्हें सिद्धान्तवादी और न जाने क्या क्या बताते हुए राष्ट्रपति तक बना डाला है !
कोई मुझे बताये कि क्या सोमनाथ पार्टी से ऊपर हुए या कोई भी नेता उसकी पार्टी से बड़ा होता है क्या ?
कोई मुझे यह भी बताये कि कुछ नेताओं ने क्रास वोटिंग की और पैसा अथवा पद खाया तो उन नेताओं को आप पार्टी द्रोही या विभीषण मानने तैयार हो तो सोमनाथ पद के लिए क्या हुए ?
सच कहूं तो पार्टी द्रोही के रूप में सोमनाथ , शासकीय धन से क्वालालंपुर /विदेश जाए क्या यह लोलुपता नहीं है !
पार्टी द्रोही की शासकीय धन से विदेश यात्रा हर हालत में रिश्वत कांड या सांसदों की बिक्री के समान है !
यहाँ का गणित एक ही है भाजपा =८ बागी ,जद-यू =२ बागी ,शिवसेना =१ बागी ,बीजू जनतादल = १ बागी , तेलगु देशम =२ बागी ,एम् डी एम् के =२ बागी ,अकाली दल =१ बागी और इसी तरह माकपा = १ बागी यानि सोमनाथ !

गुरुवार, 24 जुलाई 2008

उम्मतें में अनन्या

कल अनन्या का लेख पढ़ा ,शुरू में लगा कि सांसदों की खरीद फरोख्त पर कोई टिप्पणी करने के लिए यह लेख लिखा गया होगा और पूर्वानुमान यह था कि संसद में सांसदों के व्यवहार की घिसी पिटी कहानी होगी जोकि सारे चैनल्स में पिछले पन्द्रह दिनों से बज रही है !
लेकिन मेरा अनुमान ग़लत निकला अनन्या ने मुद्दे की बात कही ,कम्युनिस्टों की संघर्ष शीलता के पतन का बिन्दु ,सोमनाथ जी का कुर्सी प्रेम ही है अन्यथा उन्हें पद को छोड़ने में दिक्क़त क्या थी उनके कुर्सी प्रेम को लालू जी जैसे नेता नीति और सिद्धांत के अनुरूप बता सकते हैं ! और कांग्रेस तो बहती गंगा में हाथ धो ही रही है ! मेरे विचार से अनन्या सही है ! क्षेत्रीय दलों अथवा अवसरवादी नेताओं पर टिप्पणी की कोई आवश्यकता ही नहीं है ! महत्त्व पूर्ण तो दो ही बातें हैं ! एक भाजपा का अनुशासन भंग होना और दूसरा किंतु सर्वाधिक महत्वपूर्ण बिन्दु है कामरेड सोमनाथ का कुर्सी मोह !

कुर्सी के मोह ने पार्टी छुड़वाई लेकिन पदलोलुप नेताओं का सानिध्य और दुलार मिला !

कुर्सी छोड़ते तो त्याग तथा संघर्षशीलता के जीवन्त प्रतीक बन जाते और जन गण का सम्मान पाते !

सोमवार, 21 जुलाई 2008

ब्लाग उम्मतें में बेनाम टिप्पणीकार

'कुन' के शुभारम्भ के कई दिनों बाद तक मुझे मौका नहीं मिला कि मैं टिक कर बैठूं !
और किसी धारदार मुद्दे पर लिख सकूं इसी दरम्यान ब्लाग 'उम्मतें ' के आमंत्रण ने पशोपेश में डाल दिया ! इस आमंत्रण को पेंडिंग रखना मेरे वश में नही था क्योंकि 'उम्मतें ' में लेखन की मेरी अपनी ख्वाहिश 'कुन' के प्राम्भ करने से भी पुरानी है ! इसलिए आज जब मैंने ब्लाग पर ' की बोर्ड ' चलाने की सोची तो मेरी पहली प्राथमिकता 'उम्मतें ' ही बना और मैंने ,बेनाम टिप्पणीकारों पर अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति देदी !
इसलिए मेरे प्यारे 'कुन ' तुम सब्र करो !

बुधवार, 16 जुलाई 2008

कुन के बारे में

यूँ तो ब्लागिंग शुरू करने का मेरा इरादा नहीं था मगर 'उम्मतें' ब्लाग को पढ़ पढ़ कर प्रेरणा मिली ! मुझे महसूस हुआ कि यह एक रचनात्मक कार्य है ! इसलिए उम्मतों की दुआओं के साथ होने की उम्मीद के साथ 'कुन' की शुरुआत कर रहे हैं !