शुक्रवार, 25 जुलाई 2008

सोमनाथ ये क्या किया और क्या कर रहे हो

'उम्मतें' ब्लाग में आदरणीय के स्खलन के नाम से इस विषय में काफी कुछ छपा है इसलिए डिटेल लिखना व्यर्थ है !
सोमनाथ के जनम दिन के बहाने कुछ ब्लागरों ने उन्हें सिद्धान्तवादी और न जाने क्या क्या बताते हुए राष्ट्रपति तक बना डाला है !
कोई मुझे बताये कि क्या सोमनाथ पार्टी से ऊपर हुए या कोई भी नेता उसकी पार्टी से बड़ा होता है क्या ?
कोई मुझे यह भी बताये कि कुछ नेताओं ने क्रास वोटिंग की और पैसा अथवा पद खाया तो उन नेताओं को आप पार्टी द्रोही या विभीषण मानने तैयार हो तो सोमनाथ पद के लिए क्या हुए ?
सच कहूं तो पार्टी द्रोही के रूप में सोमनाथ , शासकीय धन से क्वालालंपुर /विदेश जाए क्या यह लोलुपता नहीं है !
पार्टी द्रोही की शासकीय धन से विदेश यात्रा हर हालत में रिश्वत कांड या सांसदों की बिक्री के समान है !
यहाँ का गणित एक ही है भाजपा =८ बागी ,जद-यू =२ बागी ,शिवसेना =१ बागी ,बीजू जनतादल = १ बागी , तेलगु देशम =२ बागी ,एम् डी एम् के =२ बागी ,अकाली दल =१ बागी और इसी तरह माकपा = १ बागी यानि सोमनाथ !

गुरुवार, 24 जुलाई 2008

उम्मतें में अनन्या

कल अनन्या का लेख पढ़ा ,शुरू में लगा कि सांसदों की खरीद फरोख्त पर कोई टिप्पणी करने के लिए यह लेख लिखा गया होगा और पूर्वानुमान यह था कि संसद में सांसदों के व्यवहार की घिसी पिटी कहानी होगी जोकि सारे चैनल्स में पिछले पन्द्रह दिनों से बज रही है !
लेकिन मेरा अनुमान ग़लत निकला अनन्या ने मुद्दे की बात कही ,कम्युनिस्टों की संघर्ष शीलता के पतन का बिन्दु ,सोमनाथ जी का कुर्सी प्रेम ही है अन्यथा उन्हें पद को छोड़ने में दिक्क़त क्या थी उनके कुर्सी प्रेम को लालू जी जैसे नेता नीति और सिद्धांत के अनुरूप बता सकते हैं ! और कांग्रेस तो बहती गंगा में हाथ धो ही रही है ! मेरे विचार से अनन्या सही है ! क्षेत्रीय दलों अथवा अवसरवादी नेताओं पर टिप्पणी की कोई आवश्यकता ही नहीं है ! महत्त्व पूर्ण तो दो ही बातें हैं ! एक भाजपा का अनुशासन भंग होना और दूसरा किंतु सर्वाधिक महत्वपूर्ण बिन्दु है कामरेड सोमनाथ का कुर्सी मोह !

कुर्सी के मोह ने पार्टी छुड़वाई लेकिन पदलोलुप नेताओं का सानिध्य और दुलार मिला !

कुर्सी छोड़ते तो त्याग तथा संघर्षशीलता के जीवन्त प्रतीक बन जाते और जन गण का सम्मान पाते !

सोमवार, 21 जुलाई 2008

ब्लाग उम्मतें में बेनाम टिप्पणीकार

'कुन' के शुभारम्भ के कई दिनों बाद तक मुझे मौका नहीं मिला कि मैं टिक कर बैठूं !
और किसी धारदार मुद्दे पर लिख सकूं इसी दरम्यान ब्लाग 'उम्मतें ' के आमंत्रण ने पशोपेश में डाल दिया ! इस आमंत्रण को पेंडिंग रखना मेरे वश में नही था क्योंकि 'उम्मतें ' में लेखन की मेरी अपनी ख्वाहिश 'कुन' के प्राम्भ करने से भी पुरानी है ! इसलिए आज जब मैंने ब्लाग पर ' की बोर्ड ' चलाने की सोची तो मेरी पहली प्राथमिकता 'उम्मतें ' ही बना और मैंने ,बेनाम टिप्पणीकारों पर अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति देदी !
इसलिए मेरे प्यारे 'कुन ' तुम सब्र करो !

बुधवार, 16 जुलाई 2008

कुन के बारे में

यूँ तो ब्लागिंग शुरू करने का मेरा इरादा नहीं था मगर 'उम्मतें' ब्लाग को पढ़ पढ़ कर प्रेरणा मिली ! मुझे महसूस हुआ कि यह एक रचनात्मक कार्य है ! इसलिए उम्मतों की दुआओं के साथ होने की उम्मीद के साथ 'कुन' की शुरुआत कर रहे हैं !