रविवार, 15 फ़रवरी 2009

शीत निद्रा में चले जाना चाहिए !

दिन गुज़र गया है ! इसे फ़िर से आने में पूरा साल लगेगा ! अगले साल फ़िर से
लड़ लेना ! जितनी भी चाहो अतार्किक हिंसा और उसके फूहड़ प्रतिरोध के साथ तुम्हारा स्वागत है ! उम्मतें भी मान चुकी हैं तुम्हारे वज़ूद को ! " दुनिया में प्रेम है और वो भी हैं " फ़िलहाल तुम या तो किसी और मौसम में ढलकर सक्रिय हो जाओ ! नये बहानों ,नई उर्जा के साथ !
वर्ना तुम्हे...शीत निद्रा में चले जाना चाहिये !

शनिवार, 3 जनवरी 2009

उच्च शिक्षा पर

आपका लेख विचारणीय है और सैद्धांतिक रूप में हम आपसे शत प्रतिशत सहमत हैं ! किंतु उच्च शिक्षा की इस हालत के लिए पृष्ठभूमि में मौजूद दूसरे बिन्दुओं को नजर अंदाज़ नहीं किया जाना चाहिये ! शिक्षा में नौकर शाही का हस्तक्षेप , राजनैतिक सत्ता और गलियारों की अवांछित भूमिकायें , जनगण की उदासीनता वगैरह वगैरह ! ऐसे अनेकों कारक हैं जिन्हें जोड़कर ही निष्कर्ष निकाले जाने चाहिये ! बहुत समय से सोच रहे थे कि अच्छे आलेख और सुचिन्ताओं के लिए आपको बधाई देंगे !

सोमवार, 15 दिसंबर 2008

पं.सुन्दरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय........अभ्यारण्य....?

उच्च शिक्षा में अनियमित (स्वाध्याई ) छात्रों की बढती संख्या नें ,नीति निर्माताओं की नींद उड़ा डाली थी और वे उच्च शिक्षा में गुणवत्ता की अभिवृद्धि के लिए चिंतन ,नीति निर्धारण और उसके क्रियान्वयन हेतु प्रयत्नशील हो गए थे ! उनके चिंतन की पृष्ठभूमि में निम्नांकित बिन्दुओं का महत्वपूर्ण स्थान था !

१ : उच्च शिक्षा के नियमित संस्थान सर्व सुलभ नहीं हैं और भारी भरकम लागत /खर्चों के मद्देनज़र इनका विस्तार सहज और सुविधाजनक नहीं है !

२: उच्च शिक्षा में 'मांग' की अधिकता के कारण संसाधनों ( आपूर्ति ) का विस्तार अनिवार्यता है ! जोकि पूंजी के अकूत और अबाधित निवेश से ही सम्भव हो सकता है ? हालाँकि हमारे देश की परिस्थितियां इसके अनुकूल नहीं है अतः वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर शुरू किए गए प्रयोग , अनियमित (स्वाध्याई ) छात्र होकर डिग्री पाने की सुविधा ने गुणवत्ता का संकट खड़ा कर दिया है !

३: उच्च शिक्षा में गुणात्मक ह्रास देश हित में कदापि भी नही है ! इसलिए अनियमित छात्रों की भीड़ में ही प्रयोग करना पड़ेंगे !

४ : इसके अतिरिक्त अध्ययन आकांक्षियों का एक बड़ा वर्ग उम्र की सीमा के ऊंचे छोर पर आकर भी ,सामाजिक /पारिवारिक /आर्थिक अथवा नियमों के बंधन या अन्य कारणों से उच्च शिक्षा से वंचित रह गया है उसे भी उच्च शिक्षा की सहूलियत उपलब्द्ध कराने की जरुरत है !

इसीलिए नीति निर्माताओं के सामने लागत में वृद्धि (अधिक पूंजी निवेश ) किए बिना ,वंचित वर्ग को गुणवत्ता सहित उच्च शिक्षा के विकल्प उपलब्ध कराने की चुनौती मुंह बाये खड़ी थी !
चूँकि नियमित संस्थानों में एक निश्चित समय में ही संसाधनों यथा स्टाफ ,भवन उपकरण आदि का उपयोग किया जा रहा था और शेष समय में पूंजी के अल्प निवेश (प्रेरणा स्वरुप ) के साथ इन संसाधनों का पुनः उपयोग सम्भव था अतः भावी छात्रों में स्वाध्याय के साथ शिक्षकों ( विशेषज्ञों )के सीमित संपर्क और नियमो /बंधनों में शिथिलता के साथ, दूरस्थ शिक्षा यानि की मुक्त शिक्षा की परिकल्पना की गई थी !
इसका एक अर्थ यह भी है कि छात्रों को शिक्षा की नियमित प्रणाली में जोड़े बिना ,पहले से उपलब्ध संसाधनों के पुनःप्रयोग और उन्नत तकनीक के समावेश द्वारा "मांग आपूर्ति " की सहज और समानांतर कम खर्चीली व्यवस्था का संचालन !

स्पष्ट है कि दूरस्थ शिक्षा परिषद् की स्थापना और केन्द्र तथा राज्य मुक्त विश्वविद्यालयों की स्थापना, नीति निर्माताओं की दूरगामी सोच और रणनीति का हिस्सा है !

हमारे छत्तीसगढ़ में मुक्त शिक्षा के इन्ही बुनियादी उसूलों के साथ पं सुन्दरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय बिलासपुर की स्थापना राज्य शासन ने की है ! किंतु क्या वास्तव में विश्वविद्यालय मुक्त शिक्षा का सच्चा प्रतिनिधि बन पाया है ? क्या वास्तव में कम लागत में "उच्च शिक्षा आपके द्वार" की परिकल्पना पर विश्वविद्यालय खरा उतरा है ?
यहाँ छोटे बड़े कर्मचारियों / अधिकारियों की विराट सेना कार्यरत है किंतु छात्र सुविधाएँ बड़ा सा शून्य !

आप यह जान कर दुखी होंगे कि यहाँ पर छात्र प्रवेश तो लेते हैं पर वर्षों तक परीक्षा को तरस जाते हैं और अगर परीक्षा हो भी जाए तो परिणाम को !

यहाँ पाठ्यक्रमों को लेकर भ्रम , सुरसा के मुंह की तरह फैला हुआ है , और मुक्त शिक्षा के विशेषज्ञों की यहाँ पर कोई पूछ परख नही है ! इसलिए छात्रों पर नियमित विश्वविद्यालय की तरह नियम थोपने वाले नौसीखिये कर्मचारी/ अधिकारी मनमानी करते हैं ! जिसके कारण छात्र दिशाहीन और मतिभ्रम का शिकार हो चले हैं !
क्या पं सुंदर लाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय रसूखदार और अनुभवहीन कर्मचारियों /अधिकारियों (और शायद अपात्र भी ?) का अभ्यारण्य बन गया है ?

शनिवार, 4 अक्तूबर 2008

ये तो बद्तमीजी की इन्तहा है

मध्य प्रदेश के सम्माननीय सांसद को रेलवे पुलिस के जवानों ने लहू लुहान कर दिया ! यह देख /सुन कर बहुत दुःख हुआ ! सांसद किसी भी दल के सदस्य हों उनका सम्मान जनता के प्रतिनिधि का सम्मान और उनकी बेइज्जती जनता की बेइज्जती है !
पुलिस कर्मी जनप्रतिनिधियों के साथ इस तरह का सलूक करते हैं तो साधारण जनता के प्रति उनके रवैये को बखूबी समझा जा सकता है !
लोकतान्त्रिक देश के नागरिक ( अदना ही सही ) की हैसियत से हमारा मानना है कि
ये तो बद्तमीजी की इन्तहा है !

गुरुवार, 28 अगस्त 2008

कुन

अव्वल तो यह कि कई दिनों तक निजी /पारिवारिक कारणों से ब्लाग तक पहुंचना सम्भव नही हुआ और दूसरा यह कि टेलीफ़ोन्स और इंटरनेट पर ईश्वर तक का ज़ोर नहीं चलता तो हम किस खेत की मूली होते ! कहने का मतलब यह है कि पहले ख़ुद की समस्याएं और बाद में इन्टरनेट सर्विसेस ने बेबस कर दिया !

अब जब ब्लाग पर पहुंचे तो 'कुन के लिए ' और 'खैरियत तो है ' ने अहसास दिलाया कि कुल १८ दिनों का नागा हो चुका है ! इसलिए 'खैर' की दुआओं के लिए बहुत बहुत शुक्रिया !

यह जानकर खुशी हुई कि 'उम्मतें ' हैरान- ओ - परेशानकुन हैं !

आपके लेख और टिप्पणी पर मेरा रिएक्शन यह है कि जिस तरह से आप परेशानकुन हैं उसी तर्ज पर एक लफ्ज़ है 'कारकुन' यानि कि काम करने वाला !
मतलब यह है कि 'कुन' पर्शियन (फ़ारसी भाषा के ) प्रत्यय के रूप में -'करने वाला' है और अरबी भाषा में 'कुन ' क्रिया है जिसका मतलब है 'हो जा' !
आपको स्मरण होगा कि 'कुन' यानि कि 'हो जा ' शब्द ईश्वर की जुबान से निकले थे , जिनसे सृष्टि की रचना हुई !

मैंने ब्लाग का नाम चुनते समय अरबी शब्द 'कुन' को ख्याल में रखा था उम्मीद है एक 'रचनाकार' के रूप में मेरी भावनाओं को आप समझ गए होंगे !

रविवार, 24 अगस्त 2008

खैरियत तो है

कई दिन हुए कुन में कुछ छपा नहीं है !

नमिरा खैरियत तो है ?

हम हैरानकुन और परेशानकुन हैं !

हमने कुछ फरमाइश की है भई !

सोमवार, 18 अगस्त 2008

कुन के लिए

काफी पहले तय हुआ था कि नमिरा उम्मतें में लेख लिखा करेंगी और उन्होंने अपना कीमती समय निकाला भी ! इसी दरम्यान उन्होंने 'कुन ' की शुरुआत की और मुझे भी वही जिम्मेदारी दे डाली जोकि मैंने उन्हें दी थी यानि कि मुझे भी उनके ब्लाग में लेखन का कार्य करना है !
सबसे पहले उन्हें मुबारकबाद कि उन्होंने ब्लागिंग शुरू की !और कुछ बेहतरीन लेख भी लिखे लेकिन बदकिस्मती से मैं उन पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं दे पाया मगर सच ये है कि ब्लाग की तरह लेख भी शानदार विचारों से परिपूर्ण थे ! इसलिए सबसे पहले उनकी चिंतनशीलता को साधुवाद !
उनके ब्लाग में देर से पहुँचने के लिए खेद व्यक्त करता हूँ !
अब मुद्दे की बात यह की चूँकि नमिरा के ब्लाग का नाम चीन से आया हुआ लगता है तो यह जरुरी है कि नमिरा अपने ब्लाग के नामकरण के विषय में कुछ बताएं ? उम्मीद करते हैं कि वे 'कुन' के बारे में हमारी जानकारी में वृद्धि जरुर करेंगी ?