गुरुवार, 24 जुलाई 2008

उम्मतें में अनन्या

कल अनन्या का लेख पढ़ा ,शुरू में लगा कि सांसदों की खरीद फरोख्त पर कोई टिप्पणी करने के लिए यह लेख लिखा गया होगा और पूर्वानुमान यह था कि संसद में सांसदों के व्यवहार की घिसी पिटी कहानी होगी जोकि सारे चैनल्स में पिछले पन्द्रह दिनों से बज रही है !
लेकिन मेरा अनुमान ग़लत निकला अनन्या ने मुद्दे की बात कही ,कम्युनिस्टों की संघर्ष शीलता के पतन का बिन्दु ,सोमनाथ जी का कुर्सी प्रेम ही है अन्यथा उन्हें पद को छोड़ने में दिक्क़त क्या थी उनके कुर्सी प्रेम को लालू जी जैसे नेता नीति और सिद्धांत के अनुरूप बता सकते हैं ! और कांग्रेस तो बहती गंगा में हाथ धो ही रही है ! मेरे विचार से अनन्या सही है ! क्षेत्रीय दलों अथवा अवसरवादी नेताओं पर टिप्पणी की कोई आवश्यकता ही नहीं है ! महत्त्व पूर्ण तो दो ही बातें हैं ! एक भाजपा का अनुशासन भंग होना और दूसरा किंतु सर्वाधिक महत्वपूर्ण बिन्दु है कामरेड सोमनाथ का कुर्सी मोह !

कुर्सी के मोह ने पार्टी छुड़वाई लेकिन पदलोलुप नेताओं का सानिध्य और दुलार मिला !

कुर्सी छोड़ते तो त्याग तथा संघर्षशीलता के जीवन्त प्रतीक बन जाते और जन गण का सम्मान पाते !

कोई टिप्पणी नहीं: