शनिवार, 4 अक्तूबर 2008

ये तो बद्तमीजी की इन्तहा है

मध्य प्रदेश के सम्माननीय सांसद को रेलवे पुलिस के जवानों ने लहू लुहान कर दिया ! यह देख /सुन कर बहुत दुःख हुआ ! सांसद किसी भी दल के सदस्य हों उनका सम्मान जनता के प्रतिनिधि का सम्मान और उनकी बेइज्जती जनता की बेइज्जती है !
पुलिस कर्मी जनप्रतिनिधियों के साथ इस तरह का सलूक करते हैं तो साधारण जनता के प्रति उनके रवैये को बखूबी समझा जा सकता है !
लोकतान्त्रिक देश के नागरिक ( अदना ही सही ) की हैसियत से हमारा मानना है कि
ये तो बद्तमीजी की इन्तहा है !

7 टिप्‍पणियां:

हर्ष प्रसाद ने कहा…

सांसद हों या आम जनता, किसी के साथ की गयी बदतमीज़ी मंज़ूर नहीं होनी चाहिए. लेकिन किसी भी सांसद का पुलिस से पिट जाना इसलिए बदतमीज़ी है क्योंकि वो सांसद है या जनता का नुमाइंदा है, किसी भी दलील से खरा नहीं उतरता. मेरा ख़्याल है कि अगर जनता भी कोई तहज़ीब का दायरा तोड़े तो उसके नुमाइंदे को ही ज़िम्मेदार ठहराना चाहिए. ऐसी बहुत सी मिसालें हमारे पास हैं और हम आए दिन देखते जा रहे हैं जहाँ ये नुमाइंदे अवाम को भड़का कर हमारा जीना हराम कर रहे हैं, और अपने सांसद होने का नाजायज़ फ़ायदा उठा रहे हैं. आपके चहेते सांसद क्यों पिट गये इससे मेरा कोई सरोकार नहीं, लेकिन उनके ओहदे की दुहाई न दें और अगर वो आम जनता की नुमाइंदगी कर रहे हैं, तो उन्हे ही पीटना जायज़ होगा.

Udan Tashtari ने कहा…

पूरी घटना तो नहीं मालूम मगर है दुखद और बदतमीजी तो कतई नहीं होना चाहिये.

namira ने कहा…

श्री हर्ष प्रसाद की टिप्पणी के लिए धन्यवाद लेकिन सबसे पहले तो यह बता दें कि पिटने वाले सांसद से हमारी कोई पहचान नहीं है और न ही हम उन्हें सार्वजानिक या व्यक्तिगत रूप से जानते हैं ! हमारी प्रतिक्रिया का आधार टेलीविजन चैनल पर दिखाए गए द्र्श्य हैं और हमारी प्रतिक्रिया लोकतान्त्रिक देश के तौर तरीकों के सम्मान के लिए है ! हमारी प्रतिक्रिया किसी भी जनप्रतिनिधि के ग़लत कार्यों के समर्थन के में भी नही है !
सम्भव है कि सांसदों में से कुछ , बाहुबली / अपराधी या ऐसी ही अन्य कैटेगरी के लोग शामिल हों तो भी पुलिस को पीटने का अधिकार किसने दिया और उसकी वकालत / तरफदारी कैसी ? ?

सांसद ही क्या पुलिस को इस देश की चींटी से भी मार पीट का अधिकार नही है !

अच्छा / बुरा / सही / ग़लत यह तय करना न्यायपालिका का अधिकार है !
कोई सांसद या आम आदमी ग़लत हैं तो उन्हें न्यायपालिका का रास्ता दिखाओ !
मार पीट किस अधिकार से ??

बेनामी ने कहा…

नमिरा जी सैद्धांतिक तौर पर आप सही हैं परन्तु क्या हमारे देश की जनता और जनप्रतिनिधि वाकई में लोकतंत्र के सम्मानित प्रहरी हैं ?
आखिर कार जनता ही बेतुके / भद्दे तरीकों से नौकरी पाने या कि सांसद चुने जाने के उपायों को प्रश्रय देती हैं तो परिणाम भी उसे ही भोगने होंगे ?
आप भी भलीभांति जानती हैं कि हमारा लोकतंत्र , सैद्धांतिक और व्यवहारिक धरातल पर , "राम राज्य होना चाहिए" और " रावण राज्य हैं" जैसा हैं !
हैं ना !

हर्ष प्रसाद ने कहा…

नमीरा जी, आपके पोस्ट की भाषा कुछ यूँ थी -

'मध्य प्रदेश के सम्माननीय सांसद को रेलवे पुलिस के जवानों ने लहू लुहान कर दिया ! यह देख /सुन कर बहुत दुःख हुआ ! सांसद किसी भी दल के सदस्य हों उनका सम्मान जनता के प्रतिनिधि का सम्मान और उनकी बेइज्जती जनता की बेइज्जती है !'....

इसके आगे आपने लिखा है -

'पुलिस कर्मी जनप्रतिनिधियों के साथ इस तरह का सलूक करते हैं तो साधारण जनता के प्रति उनके रवैये को बखूबी समझा जा सकता है !'

मेरी प्रतिक्रिया पुलिस के निर्मम व्यवहार को न्यायोचित नहीं ठहरा रही, बल्कि आपके पोस्ट की उन जगहों पर है जहाँ आपने 'सम्मानीय सांसद', 'उनका सम्मान जनता के प्रतिनिधि का सम्मान', 'उनकी बेइज्जती जनता की बेइज्जती है' और 'जनप्रतिनिधियों के साथ इस तरह का सलूक करते हैं' जैसे जुमले इस्तेमाल किए हैं. इसमें कोई शक़ नहीं कि पुलिस के इस रवैय्ये को बदलना होगा, लेकिन जब तक वो नहीं बदलता तब तक 'सम्मानीय सांसद', और 'जनप्रतिनिधियों' के साथ भी वही सुलूक़ होना चाहिए जो 'साधारण जनता' के साथ होता है. 'उनकी बेइज्जती जनता की बेइज्जती है' जैसे जुमले तब सार्थक होंगे जब जनता की बेईज्ज़ती, उनकी बेईज्ज़ती मानी जाने लगेगी.

हर्ष प्रसाद ने कहा…

चलते चलते आपको बताना चाहूंगा, कि इस मामले की छानबीन के दौरान मुझे पता चला कि बेचारे सांसद जब एक आम आदमी की तरह पिट गए, तब पुलिस वालों को पता चला कि वो सांसद थे. यानी पिटते वक़्त पुलिस वाले उन्हें एक आम आदमी ही समझ के पीट रहे थे.

namira ने कहा…

एक बार फ़िर से श्री हर्ष प्रसाद को धन्यवाद , कि उन्होंने 'लोकतान्त्रिक मूल्यों' के प्रति हमारी चिंताओं के लिए प्रतिक्रियाएं दीं हैं !
'सम्माननीय' , 'श्री' , और 'जी' , हमारे भाषाई संस्कार का हिस्सा हैं ! और हमारा विश्वास है कि थोड़ा बहुत 'कड़वाहट' होने पर भी , ज्यादातर लोग इसका अनुपालन करते हैं ! शायद इसीलिए हमने आज तक किसी मृत दुश्मन के लिए भी 'स्वर्गीय' की जगह 'नरकीय' का संबोधन नहीं सुना है !
खैर ...श्री हर्ष प्रसाद ने कम से कम 'सांसद' को 'सम्माननीय' न सही 'बेचारा' तो माना ! हमारी प्रतिक्रिया भी यही है कि 'लोकतंत्र' में 'सामान्यजन' याकि 'जनप्रतिनिधि' को 'बेचारा' बना देने वाला पुलिसिया रवैया लोकतंत्र का उपहास और अशिष्टता ( बदतमीजी ) के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है ! पुनः धन्यवाद !
और हाँ श्री 'अनन्या' एवं 'उड़नतश्तरी' की टिप्पणियों के लिए भी हम कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं !