दिन गुज़र गया है ! इसे फ़िर से आने में पूरा साल लगेगा ! अगले साल फ़िर से
लड़ लेना ! जितनी भी चाहो अतार्किक हिंसा और उसके फूहड़ प्रतिरोध के साथ तुम्हारा स्वागत है ! उम्मतें भी मान चुकी हैं तुम्हारे वज़ूद को ! " दुनिया में प्रेम है और वो भी हैं " फ़िलहाल तुम या तो किसी और मौसम में ढलकर सक्रिय हो जाओ ! नये बहानों ,नई उर्जा के साथ !
वर्ना तुम्हे...शीत निद्रा में चले जाना चाहिये !
5 टिप्पणियां:
दिन गुज़र गया है ! जितनी भी चाहो अतार्किक हिंसा और उसके फूहड़ प्रतिरोध के साथ तुम्हारा स्वागत है ! " दुनिया में प्रेम है और वो भी हैं " फ़िलहाल tumhe नये बहानों ,नई उर्जा के साथ
शीत निद्रा में चले जाना चाहिये !
नमीरा जी इस दिन के आने का तो अब बस इंतजार ही रह जाएगा
मैं खुश हूँ ! आप नियमित लिखा करें !
Bahut sundar rachana...i lvoe to read ur next poem..Regards
Lines Tell the Story of Life "Love Marriage Line in Palm"
... behatreen abhivyakti !!!
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