रविवार, 10 अगस्त 2008

असीम घृणा

ब्लाग उम्मतें में समीर नें लिखा कि ' आओ देश की समृद्धि के लिए पुतला फूंकें ' उनका मंतव्य साफ समझ में आता है कि वे देश में अराजक प्रवृत्ति के नागरिकों के बर्ताव से बहुत दुखी हैं ! उनकी सदाशयता स्तुत्य है ! उन्हें एक अच्छे आलेख के लिए बधाई !
समीर की तरह हर देशभक्त सोचता है मगर बेबस है क्योंकि अगर आप 'पुतला फूंको' प्रवृत्ति के खिलाफ़ एक शब्द भी बोले तो आप पर देशद्रोही /समाज द्रोही और इस तरह के ढेरों विशेषण जुड़ जायेंगे ! यही नही आप ख़ुद का पुतला याकि आपका घर भी फूंका जा सकता है !
देश के लिए सुचिंतित और सुमंगल आकांक्षी , शान्ति प्रिय लोगों की आबादी दिन बदिन सिकुड़ रही है ! और हल्ला बोल ,हड्डी तोड़ ,पुतला /घर फूंकू लोगों की जनसँख्या में दिन प्रतिदिन विस्तार हो रहा है ! शायद सुरसा के मुंह की तरह से !
ये लोग तार्किक /चिन्तनशील प्राणी तो क़तई नहीं कहे जा सकते इनका आचरण भीड़ व्यवहार के अतिरिक्त कुछ भी नही होता ! ये लोग स्वभाव से क्रोधी /हिंसक व्यवहार याकि रक्ष संस्कृति के प्रतीक हो चले हैं !

हमें बचपन से सिखाया गया है कि हम सबमे ईश्वर का अंश मौजूद है ! एक तरह से हम सभी अंशावतार हैं ! ईश्वर , जोकि असीम दया ,अप्रतिम प्रेम , अनुकम्पा की अनन्तता और निश्चलता का अक्षय स्रोत है उसका अंशावतार इन्सान ,इतना फ़्रस्ट्रेटेड , इतना असहिष्णु ,इतना हिंसक ,इतना अतार्किक , इतना दुर्बुद्धि और सहराए -इश्क ( प्रेम का रेगिस्तान ) क्यों है ! उसमे दूसरे इंसानों के लिए अनुकम्पा /दया के स्रोत शुष्क क्यों हो गए हैं !
आखिर इन्सान ???
असीम घृणा के साथ जी कर इन्सान रह जाता है क्या ? ?

7 टिप्‍पणियां:

जय श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत बढ़िया विचार हैं आप का कहना सही है हम लोग अचानक सम्वेदनाहीन और निष्ठुर हो चले हैं !

बालकिशन ने कहा…

"उसमे दूसरे इंसानों के लिए अनुकम्पा /दया के स्रोत शुष्क क्यों हो गए हैं !
आखिर इन्सान ???
असीम घृणा के साथ जी कर इन्सान रह जाता है क्या ? ? "
बड़े गंभीर प्रश्न है.
मन को भेदते हुए.
अगर इनके उत्तर खोज ले तो बहुत सी समस्याओं का हल हो जाए.

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत गहरा विचारणीय आलेख, आभार.

ataaya ने कहा…

बहुत ही बढ़िया ,शानदार , बेहतरीन ,उम्दा !

बेनामी ने कहा…

बेशक ,शानदार लेख है यह ,आप के ख्यालात बेहद नेक हैं ! हमारी शुभकामनायें !

sameer ने कहा…

विश्व गुरु कहलाता था यह महादेश ! अब संवेदनाहीन जनसँख्या का टापू बन गया है ! दोषी हम सभी हैं !

fulturuj ने कहा…

लिखते तो सभी टॉम डिक एंड हेरी हैं परन्तु ......
भाषाई तमीज के साथ साथ मौलिक विचारों से , ज्यादातर लेखकों के "ऊपरी माले" खाली रहते हैं ! इन सब से अलग आप कम लेकिन विचार परक लिखती हैं !
मुझे तो आप दार्शनिक लगती हैं और आपमें देश के लिए असीम प्रेम और सुचिंतायें कूट कूट कर भरी हुई हैं!
साधुवाद ! साधुवाद ! साधुवाद !